हम पूजक है. उपासक हैं, धरती माँ के इसे पैरों व आँसुओं से पधारे बैठे हैं

मानव समुदाय के आध्यात्मिक उन्नयम एवं सांस्कृतिक विकास के लिए समस्त विश्व में एक विनम्र एवं गतिशील ईश्वरीय भावान्दोलन की एक राज्ञा है ‘रामकृष्ण संध एक नाम है यह “आत्मनीमीक्षाचे जगद्धिताय च” के आदर्श वाक्य को सम्बल बनाकर लोकमंगल हेतु आध्यात्मिकता एवं लौकिकता के बीच अन्तराल पर सेतु निर्माण की उत्कट अभिलाषा का। इस भावान्दोलन ने समस्त विश्व में प्रेम मुक्ति और समन्वय का संदेश संचारित करने के लिए कालक्रम में अनेक आयाम ग्रहण किए।
प्राकृतिक सम्पदा, सुषमा, ऊर्जा से परिपूर्ण झारखण्ड में भी इस सावान्दोलन ने रामकृष्ण विवेकानन्द मावधारा से अभिषिक्त सन्यासियों के नेतृत्व में लोकमंगार रके अभिनव दूत बने विभिन्न केन्द्रों की गतिविधियों के माध्यम से सेवा रुपी यक्ष चलाया जा रहा है।
रामकृष्ण मिशन आश्रम, रांची के सेवा मंदिर दिव्यायन की स्थापना का तात्कालीन कारण 1967 ई. में रोची तथा आसपास के क्षेत्रों में अकाल पड़ा था, जिससे क्षेत्र में अन्न के साथ-साथ जल की भी अत्यधिक कमी हो गई थी, इसी दुःख के समय आश्रम के सन्यासियों को भगवान श्रीरामकृष्ण की वाणी का स्मरण हुआ “शिव ज्ञान से जीच सेवा” एवं “खाली पेट धर्म नहीं होता। अतः उन्होंने स्थानीय लोगों की यथासाध्य सेवा की परंतु एक बार अन्न का अस्थायी समाचार कर देने से तो समस्या समाप्त नहीं हो सकती है, इसी समस्या का स्थायी समाधान करने हेतु 1969 ई. में “दिव्यायन” की स्थापना की गई। जिसके माध्यम से कृषि तथा अन्य जीविकोपार्जन संबंचित प्रशिक्षण दिया जाएगा जी उनके अछ वस्त्र संबंधी समस्या का स्थायी समाधान कर सके।
स्वामी विवेकानन्द ने भारत भ्रमण के दौरान भविष्यवाणी की थी “मध्य भारत में हजारीबाग और इस प्रकार के अन्य जिलों के निकट अभी भी उपजाऊ, सिंचाई सुविधा सम्पन्न, अच्छे भूखण्ड आसानी से उपलब्ध होंगे। इस क्षेत्र में बड़ा भूखण्ड अधिकृत करना होगा और इस पर तकनीकी शिक्षा हेतु स्कूल और क्रमशः कारखाना इत्यादि प्रारंभ करना होगा। चूँकि खाद्य के उत्पादन के नये तरीकों का आविष्कार होगा, लोग बस्तियों में निवास करने लगेंगे। तब तुम जैसा चाहोगे उसका निर्माण कर सकोगे।”

 

दिव्यायन द्वारा जल संचयन कार्यक्रम

  1. खूंटी में जलग्रहण परियोजना
  2. अंगारा में वाटरशेड परियोजना

Updated on 5/08/2024