रामकृष्ण मिशन आश्रम दिव्यायन कृषि विज्ञान केन्द्र मोराबादी रांची

  • दिव्यायन कि स्थापना 1969 में।
  • दिव्यायन कृषि विज्ञान केन्द्र के स्थापना 1977 ई.
  • पुरे भारत वर्ष में तीन बार सर्व प्रथम पुरुस्कारअवार्ड मिला हैं। 1996 – 97, 16 -17, 19 – 20 .
  • यहां पर 15-20 तरह का प्रशिक्षण दिया जाता है।
  • ड्रॉप आउट छात्र को दिव्यायन में प्रशिक्षण के दौरान NIOS के माध्यम से 10th , 12th  मे दाखिला दिलाया जाता हैं।
  • किसी प्रकार गरीब परिवार से आते है, उनकी खर्च दिव्यायन के द्वारा दिया जाता है।
  • झारखंड के छात्र के लिए सुनहरा अवसर ST , SC, OBC के लिए बिलकुल निशुल्क होताहै।GEN के लिए 2500/माह।
  • प्रमुख गति विधियां आर्थिक सुरक्षा , स्वास्थ्य शिक्षा सांस्कृति, ग्रामीण विकास, आदिवासी कल्याण प्रशिक्षण के दौरान फोटो, आधार जाति लाना आवश्यकता होती है।

जैविक खेती (स्वस्थ मिट्टी,सवस्थ फसल,स्वस्थ समाज)

  • संरक्षित कृषि स्वस्थ पर्यावरण
  • ग्रामीण स्तर पर रोजगार सृजन
  • स्वस्थ मिट्टी जीवंत खेती
  • न्यूनतम लागत अधिक तम मुनाफा

प्राकृतिक संसाधन संरक्षण आधारित प्रक्षेत्र

  • शून्य प्लास्टिक ( सिंगल यूज प्लास्टिक मुक्त परिसर)
  • शून्य रसायन आधारित खेती
  • शून्य जल हानि
  • शून्य प्रक्षेत्र अपशिष्टव अव शेष
  • सौर्य ऊर्जा एव गोबर गैस आधारित परिसर

शहरी बागवानी केन्द्र

  • यहां पर 6 प्रकार का जैविक दवाई मिलता है।
  • यहां पर सभी दवाई कीड़े नियंत्रण करने हेतू एवम जैविक खाद के रूप में प्रयोग किया जाता हैं।
  • Air Purifying Plant(बोस्टनफर्न,स्नेक प्लांटआदि) जोकि प्रदुषित वायु को शुध करता है।

बिरसा विभाग

  • यहां पर छोटे छोटे प्लॉटमे बांटा गया है।
  • यहां पर कुछ अनुसंधान हेतु कि यारी भी है।
  • सभी प्रकार के फसले उगाए जाते हैं जैसे जड़ , पत्ते, तना, फल वाले आदि।
  • घासको नियंत्रित करने के लिए मल्चिंग का प्रयोग किया गया।
  • फसल को कीड़े से नियंत्रित के लिए Trap crop अपना याग या है जैसे गेंदा फूल

गुलाब का प्रकार

  • सभी प्रकार के गुलाब है
  • अलमांडा, आम्मचोर,बुके गुलाब
  • पौधो कोकटिंग, वडिंग,ग्राफटिंग किया जाता है।
  • कम समय में कैसे फूल के पोधो को तैयार करते है।
  • कम खर्च में अजोला  का उत्पादन ।अजोला से मुर्गी का भोजन हो जाता है पौधो को पोशाक तत्व प्रदान करता है।

केंचुआ खाद

  • छायादार स्थान परबनाया जाता है।
  • ग्रीन शेडया पेड़ के नीचे।
  • केंचुआ खाद आसानी से सड़ने वाली पदार्थ से बनाया है जैसे एग्रीकल्चर वेस्ट।
  • जिस तरह से फसल का रेट हाईलॉ होताहै।
  • उस तरह से केंचुआ खाद कारेट उच्च नीच नही होता है।
  • खाद बनाने के लिए जीरो बजट की आवश्यकता होती है।
  • मजदूर हेतु काम खर्च।
  • इस खाद से किसी प्रकार का एग्रीकल्चर को नुकसान नहीं होता है।

तरल जैविक खाद एवं दवाई

  • यहां पर सभी प्रकार के खाद बनाया जाता है।
  • संजीवनी, शस्यगव्य पंचगव्य, कुणापाजला,।
  • नीमस्त्र, ब्रह्मास्त्र,दस्पर्णी अर्क आदि।
  • ये सामग्री आसानी से ग्रामीण क्षेत्रों में मिलता है।
  • किसान का खर्च को कम करता है।
  • इस खाद से पैदावार काफी अच्छी होती है।
  • बाजार मूल्य अधिक मिलता है।

मुर्गीपालन

  • Poultry farm E-W बनाना चाहिए।
  • 3से 4 प्रकार का मुर्गी है।
  • कावेरी, लेयर, सोनाली दिव्यायन रेड ।
  • कुछ मुर्गीअंडे के लिए, कुछ मुर्गी दोनो के लिए हैं।
  • मुर्गी फार्मसे लीटर निकालने का अच्छा तरीका है।
  • जिसेकी आसानी से मुर्गी लीटर को निकाला जाता है।
  • मजदूर खर्च की जरूरत कम पड़ता है।
  • बागवानी सह मुर्गीपालन होती है।जिसे की मुर्गी का स्वस्थ अच्छी होती हैं।
  • सुबबुल,मूंगा, सहतूत आदि का पौधो लगा के उसका पत्ता खिलाना।
  • एजोला उत्पादन कर उसे खिलाना।

लाख की खेती

  • लाख कीटो काजीवन चक्र उनकी, प्रजाति वातावरण तथा पोषक वृक्ष पर निर्भर करता है।
  • पोषक वृक्ष दो प्रकार के होते है मुख्य एव समान्य पोषण वृक्ष।
  • पोषण वृक्षके नाम पलास, कुसुम,सेमिया लाता,पुत्री, भालिया इत्यादि।
  • लाख कीटो की दो उप-प्रजातियां है।
  • रंगीनी एव कुसमी।
  • प्रत्येक उप- प्रजाति वर्ष में दोबार जीवन चक्र पूरा करती हैं।
  • कुसमी कीट पालन मुख्य रूप से कुसुम बेर, एव सेमिया लता पर होता हैं।
  • कुसमी लाख की खेती जनवरी/ फरवरी से जून/जुलाई मे होता हैं। जो 6-6 माह मे पूरा होता हैं।
  • रंगीनी कीट का पालन मुख्य रूप से पलास एव बेर पर होता हैं।
  • रंगीनी लाख की खेतीअक्टूबर/नवबर से जुन/ जुलाई मे होता हैं, जो आठ एव चार माह में पूरा होता हैं।
  • कुसमी लाख का उत्पादन 30,000 हजार कीट से  1kg एव रंगीनी लाह का उत्पादन 1,50,000 की टसे 1 kg होता हैं।

नेपियर तथा बरसीम घास

  • दूसरे घास के तुलना मे इस घास की मोटाई लंबाई अधिक उत्पादन होता है।
  • गाय अधिक चावसे खाती है।
  • इसके तुलना में बर सीम अधिकअच्छी हैं।
  • अक्टूबर माह में लगाया जाता है।
  • फरवरी के अंतिम माह तक रहता हैं।
  • चार बार हम लोग कटाई करते है।
  • गाय का हरा चारा के रूप में दिया जाता है।

बीजभंडार

  • सभी प्रकार का बीज उपलब्ध है।
  • तीनों मौसम में होने वाली फसल का बीज उपलब्ध है
  • वैज्ञानिक विधि से सभी बीज को उपचारकर के किसान को दिया जाता है।
  • ताकि किसान पैसा लगाकर खर्च मे ना डूब जाए।

गौबरगैस

  • ये गोबर गैस पुराने समय के तुलना मे अभी का काफी अच्छी है।
  • इसे आसानी से किसी समय पर कही भी लेके जा सकते है।
  • मेहनत को आवश्यकता कम है
  • 1:2 के अनुपात में गोबर पानी देना पड़ता है
  • बचे गोबर घोल( स्लूरी) को एग्रीकल्चर काम मे लाते है

ढेरविधि खाद( Heap Compost)

  • यह खाद आसानी से बनाए जाने वाली जैविक खाद हैं।
  • इस खाद को बना ने हेतु आवश्यक सामग्री जैसे गोबर, गोमूत्र, फसल अवशेष, लकड़ी का डंठल, एवम मिट्टी इत्यादि।
  • इसेआसानी से अप घटित होने हेतू बीच बीच मे पल टाई करना होता हैं।
  • इस विधि से न्यूनतम प्रयास में अधिक मात्रा में खाद बना कर तैयार हो जाती है
  • यह खाद 80 से 90 दिनों मे बन कर तैयार होता हैं।
  • इस खाद प्रयोग बागवानी, फसलों, एवम कृषि मे उपयोग होता हैं।

Cow shade waste

  • पानी, गाय का गोबर, गाय का मूत्र का एक जगह जमा किया जाता है।
  • इस पानी को फसल को पानी देने का कार्य किया जाता है।
  • जिसमे नाइट्रोजन की मात्रा पाया जाता है।
  • वाटर होल्डिंग कैपेसिटी अच्छा होता हैं।

गाय पालन इकाई

  • विभिन्न प्रकार का गाय साही वाल जर्सी उपलब्ध है
  • होल्स्टीन फ्रिजियन प्रति दिन 18-20kg दूध देती हैं ।
  • एक देसी ( साही वाल, गिर, लालसिंधी आदि)गाय प्रति दिन 8-10kg दूध देती है।
  • एक गाय का भोजन 10-15kg का होता है।
  • बछड़े की सिंग को जन्म से 15-20 दिन के अंदर दवाई देकर मार दिया जाता है।
  • गाय का दूध मिल्क मशीन से निकला जाता है जिस की काम समय में अधिक गाय से दूध निकाला जाता है, और मजदूर खर्च कम हो जाता है।
  • दिन मे दोबार गाय को स्वतंत्र होने के लिए बड़ी में छोड़ दिया जाता है जिसे अधिक दूध दे सकती है।
  • गाय का शेड हमेशा Tail to Tail बनाना चाहिए कर्मचारी को कार्य करने का सुविधा होती है गायका बीमारी होने से बचाया जा सकता है।

मत्स्यपालन

  • यहां पर तीन प्रकार का तालाब है नर्सरी मछलीपालन, बागवानी सह मत्स्यपालन।
  • इस तालाब से तीनों लेयर से मछलीपालन होता है।
  • कतला,रेहू, मिरगल, ग्रास कार्प, कॉमन कार्प, सिल्वर कार्प।
  • समय समय पर पानी को साफ करने के लिए चुनाका प्रयोग किया जाता हैं।
  • मछली को फुंसी से याघाव से बचाव के लिए समय समय पर KMNO4 का दवाएं का प्रयोग किया जाता है।
  • मछली का चारा एक प्लास्टिक का बैग में चोकर खली मक्का का चूरा देकर हम पलास्टिक बेग को छेंद कर देते हैं।
  • मछली का चारा नष्ट नही होता है।

अजोला इकाई

  • हरा खाद के रूप में रहता है।
  • घास के पैदावार को होने से रोकता है।
  • अजोल को गाय मछली बतख सुअर को खिलाते है।
  • मांस, दूध, अंडा, का स्वादिष्ट बड़ जाता है।
  • इसे आसानी से उगाया जा सकता है।

बतक सह मछलीपालन

  • बतख और मछली पालन कर सकते है।
  • जब बतख अपनी पैर के माध्यम से अंदर का पानिं को बाहर निकालने के प्रक्रिया के समय तालाब का ऑक्सीजन लेवल बढ़ता है।
  • बतख का लीटर मछली का चारा के रूप में प्रयोग होता है।
  • ग्रामीण लोग बतख और मछली पालन से डरते है क्योंकि बतख मछलियां को अपना भोजन बनान लेगा।
  • जब मछली का साइज 2 से 3 इंच होतो बतख को तलाब में नही छोड़ना चाहिए क्योंकि बतख का मुंह का साईज में रहता है।
  • बतख को दो माह के बाद में तालाब में छोड़ना चाहिए।जिसे की मछली का साइज बढ़ जायेगा।मछली बतख से बचने का कोशिश करेगा।
  • दिव्यायन खाकी कैम्पबेल साल में 100 से 125 अंडा देती हैं।गांव के अनुकूल वातावरण में अच्छे से अपने आप कोढा लेते हैं।

लॉटनेल( Low Tunnel)

  • लॉटनेल नर्सरी का छोटा चेंबर घर कहलाता है।
  • ओला बारिश से बचने का सब से उतम प्रबंधन है।
  • लोटने लके पाली को ठंडे समय में ढंक देते है, और गर्मी समय में खोल देते है।
  • कीडे मकोड़े से बचाने के लिए कारगर साबित होता है।
  • कम समय में बीज को गर्मी देकरअंकुरण कर सकते है।
  • भीषण बारिश होने पर फसल को नष्ट होने से बचाया का सकता है।

मधुमक्खी पालन

  • दिव्ययान में मधुमक्खी पालन 45 दिन का होता है।
  • पांच प्रकार का मधुमक्खी होती है।लेकिन दो मधुमक्खी को पालन करके आर्थिक सुधार कर सकते है।
  • भारतीय मधुमक्खी , इटालियन है।
  • ये आसानी से पाला जा सकता है।
  • इटालियन प्रत्येक साल 70 से 80 किलो मधु रस का उत्पादन देता है।
  • इटालियन मधुमक्खी पालन में माइ ग्रेशन की जरूरत पड़ती हैं।
  • भारतीय मधुमक्खी प्रत्येक साल 20से 25 किलो मधु रसका उत्पादन देता हैं।
  • मधुमक्खी पालन से फसल की उत्पादन में बढ़ोतरी होती है।
  • मधुमक्खी पालन संबंधित पौधे नीम, करंज, पलास, लिचि आदि।

टपक सिंचाई

  • किसानों की समय की बचत
  • पानी की बचत।
  • सही जगह पर सिंचाई करना।
  • खरपत वार नियंत्रण
  • टपक सिंचाई को ऑन कर के किसान दूसरे काम को कर सकते है।

मशरूम ईकाई

  • मशरूम का फार्मिंग ग्रामीण क्षेत्रों में सरल और सस्ता से उगाया जा सकता है।
  • मशरूम उगने वाली सामग्री ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से मिलता है।
  • दो प्रकार के मशरूम झारखण्ड में प्रसिद्ध है।बटन और ढींगरी।
  • दोनो मशरूम का बाजार में काफी मांग है।
  • ढींगरी मशरूम को उगने के लिए खर्च एक बंडल में 35 से 36 रुपए तक खर्च आ जाता है।
  • उत्पादन एक बंडल में 2से 2.5 kg का होता हैं।
  • एक बेड से लाभ 200 रुपए के करी बहो जाता है।
  • बटन मशरूम के लिए खर्च 55 से 56 रुपए और उत्पादन 1. 1.5 kg होता हैं।लाभ 200 के करीब आता है।

तीन स्तरीय चारा ग्रास

  • यहां चार प्रकार के ग्रास उपलब्ध है।
  • तीन स्तर में चारा पाया जाता है।
  • एक नंबर गिनिनियाग्रास।
  • दूसरा गैलिरिसिडिया, टेपोरोसिया।
  • तीसरामूनगा।

मिट्टी जॉच

  • मिट्टी जॉच करके फसल उगाने से भूमि में कितना मात्रा में पोषक तत्त्व मौजूद है वह हमे पता चलती है।
  • किसान बिना मिट्टी जॉच किए urea, DAP डालने से भूमि की उर्वरक शक्ति कम हो जाती है।
  • मिट्टी कड़ा हो जाता है मिट्टी में मौजूद जीवाणु, केचुआ मर जाते है।
  • बच्चो को 3 तीन महीना प्रशिक्षण दिया जाता है।
  • अपने ग्रामीण स्तर पर उद्योग करने के लिए स्कॉलरशिप दिया जाता है
  • राँची ला के मिट्टी जांच करना किसान के लिए समस्या उत्पन्न।

हाईड्रोपोनिक

  • हाइड्रोपोनिक वैज्ञानिक विधि है जो काम समय में पशु को समय पर हरा चारा खिलाने केलिए चारा तैयार करते है।
  • जीरो मिट्टी कीआवश्यकता होती है।
  • हर समय दुधारू पशुओं को हरा चारा उपलब्ध करती हैं।
  • एक tray में 1.5 kg से 2kg मक्का लगती है।
  • उत्पादन 10से 12 kg का होता है।
  • यह गर्मी में 10 से 12 दिन मे तैयार हो जाता है और ठंड में 20 से 25 दिन में।
  • एक tray में चार गाय का भोजन होती है।

बागवानी सह मुर्गीपालन

  • मुर्गी हमेशा शुद्ध वातावरण में रहती है।
  • उनकी चारा कुछ % पेड़ पौधो से मिलती है। जिसमें लोगों का चारा का खर्च कम हो जाता है।
  • हमेशा मुर्गी स्वस्थ और सुंदर दिखाई देती है।
  • उनकी मांस उत्तम हो जाता है।
  • मुर्गियों की मरने की संख्या कम हो जाती हे।
  • कम जग हमें ज्यादा मुर्गी पालन कर सकते है।
  • मुर्गी अपना लीटर छोड़ती हे, जिससे की पेड़ पौधा को पोषक तत्व प्रदान करता है।अलग सेखाद देने की जरूरत नहीं होती है।

पोषण वाटिका

  • घर के आस पास एक छोटा पोषण वाटिका बनाना चाहिए।
  • वहा पर सभी प्रकार के पोषक सब्जियों को उगाया जाता है।
  • 3,6,1/2 माह वह वर्षीय पौधा लगाना चाहिए।
  • हर रोज अपनी परिवार को उस बडी सब्जी प्राप्त होती है।
  • बाजार से कम से कम निर्भर हो सके।
  • हर रोज हमारी शरीर को सही मात्रा में पोषण मिलता रहना चाहिए।

औषधि पौधा

  • ये एक औषधि शाला है।
  • पुराने समय में बुजुर्ग लोग आयुर्वेदिक दवाई उपयोग कर पुराने से पुराने बीमारी को ठीक करते थे।
  • पहले तो राम जवानों के समयअस्पताल नही था इसी जड़ी बूटी से इलाज करते थे।
  • जैसे बाक्स , शतावर, हरिसिंगर, तुलसी,।
  • इसकी खेती से किसान आर्थिक स्थिति को सुधार सकते है।

मल्टीलेयर फार्मिंग

  • इस विधि में 4 से 5 प्रकार का फसल उत्पादन किया जाता है।
  • एक भूमि पर किया जाता है।
  • भूमिसे 10 फीट ऊपर किया जाता है।
  • लाभ प्राप्त होता है की लते दार वाली फसल लगाते है उसके नीचे भूमिके नीचे होने वाली फसल को लगाते है

जब तक मेरे देश का एक कुत्ता भी बिना भोजन के रहता है, तब तक उसे खाना खिलाना और उसकी  देखभाल करना ही मेरा धर्म है, इसके अलावा जो कुछ भी है वह या तो गैर-धर्म है या मिथ्या धर्म है!”

अनाज उत्पादन करने का नया तरीका उद्भावन हमारा सर्वप्रथम कर्तव्य है।

Divyayan Ki Uttkarsh Gatha

Updated on 18th July 2024